धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के पुरुषार्थ को हर एक व्यक्ति को करना है।
अब इन पुरुषाथों में से ज्यादातर लोग केवल अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए पुरुषार्थ करते हैं और अर्थ कमाते हैं तो मात्र इच्छाओं को पूरा करने के लिए। धर्म और मोक्ष रूपी पुरुषार्थ न होने के कारण से अधर्म,अराजकता, भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है।
आज पूरी दुनियाँ में सारी उथल-पुथल, अराजकता का कारण भी यही है।
धर्ममय जीवन जीना और लक्ष्य अगर मोक्ष हो तो फिर जिन्दगी में चाहे कितना भी अर्थ और कामनाएं आयें,वह आपका कुछ भी नुकसान नहीं कर सकती हैं।
जैसे
नहर का एक मजबूत किनारा धर्म हो।
दूसरा मजबूत किनारा मोक्ष हो,
तो फिर
उस नहर में अर्थ और काम
रूपी कितना भी पानी आए,उससे नहर को कोई हानि नहीं होती है।
इसे यों समझें कि व्यक्ति का लक्ष्य अगर आत्यन्तिक दुख से छूटना (मोक्ष) हो और वह धर्म-पूर्वक जीवन जीता है तो फिर, उसके जीवन में कितने ही रुपए-पैसे और कामनाएं आएं, उस व्यक्ति को पथ-भ्रष्ट नहीं कर सकती हैं।
क्योंकि
धर्ममय जीवन जीने वालों की कामनाएं सात्विक होती हैं और उनके अर्थ (धन) भी अच्छे कार्यों में ही लगते हैं न कि अधर्म के कार्यों में।
चारों पुरुषार्थ को इसी तरह से अपने जीवन में पालन करना है। जीवन की सफलता का यही मूल-मंत्र भी है।
अगर सफल व्यक्तियों के जीवन को देखा जाय तो उनके जीवन में इसे पाया जाता है।
(Courtesy : Message from Swami Veereshwarji)