Symphony of धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के पुरुषार्थ को हर एक व्यक्ति को करना है।

अब इन पुरुषाथों में से ज्यादातर लोग केवल अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए पुरुषार्थ करते हैं और अर्थ कमाते हैं तो मात्र इच्छाओं को पूरा करने के लिए। धर्म और मोक्ष रूपी पुरुषार्थ न होने के कारण से अधर्म,अराजकता, भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है।

आज पूरी दुनियाँ में सारी उथल-पुथल, अराजकता का कारण भी यही है।

धर्ममय जीवन जीना और लक्ष्य अगर मोक्ष हो तो फिर जिन्दगी में चाहे कितना भी अर्थ और कामनाएं आयें,वह आपका कुछ भी नुकसान नहीं कर सकती हैं।
जैसे
नहर का एक मजबूत किनारा धर्म हो।
दूसरा मजबूत किनारा मोक्ष हो,
तो फिर
उस नहर में अर्थ और काम
रूपी कितना भी पानी आए,उससे नहर को कोई हानि नहीं होती है।

इसे यों समझें कि व्यक्ति का लक्ष्य अगर आत्यन्तिक दुख से छूटना (मोक्ष) हो और वह धर्म-पूर्वक जीवन जीता है तो फिर, उसके जीवन में कितने ही रुपए-पैसे और कामनाएं आएं, उस व्यक्ति को पथ-भ्रष्ट नहीं कर सकती हैं।
क्योंकि

धर्ममय जीवन जीने वालों की कामनाएं सात्विक होती हैं और उनके अर्थ (धन) भी अच्छे कार्यों में ही लगते हैं न कि अधर्म के कार्यों में।

चारों पुरुषार्थ को इसी तरह से अपने जीवन में पालन करना है। जीवन की सफलता का यही मूल-मंत्र भी है।
अगर सफल व्यक्तियों के जीवन को देखा जाय तो उनके जीवन में इसे पाया जाता है।

(Courtesy : Message from Swami Veereshwarji)

What is तप ?

In Shrimad Bhagavad Gita, Ch. 10 Shloka 5, we come across the word तप.

In the word-to-word translation book from Gita Press, it is explained as :

स्वधर्म के आचरण से इन्द्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम ‘तप ‘ है।

Here’s to digestion!

अगस्त्यं कुम्भकर्णं च शनिं च वडवानलम्।
आहारपरिपाकार्थं स्मरेद् भीमं च पंचमम्।।

अगस्त्य,कुम्भकर्ण,शनि, वडवानल और भीम इन पांचों के नाम का स्मरण कर लो, तो जो आप भोजन करोंगे वह पच जायेगा।।

(Courtesy : Message from Swami Veereshwarji)

Am I evolving?

आप संसारी हैं या साधक, इसकी जाँच के लिए निम्न मानक हैं—-

१)आपकी श्रद्धा बढ़ी या नहीं।

२)निश्चिंतता बढ़ी या नहीं।

३)संसार का भरोसा कम हुआ
या नहीं।

४) भीड़ अच्छी लगती है या
एकांत।

५)ज्ञान की पिपासा बढ़ी या
नहीं।

६)सत्कर्म या दुष्कर्म, किसमें
मन अधिक लगता है।

जय शंकर

(Courtesy : message from Swami Veereshwarji)